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मुझ निरभाग के दर पै / मेहर सिंह
Kavita Kosh से
अंजना फिर कहती है-
तूं मर्द जती गया डूब कती क्यों आया पति
मुझ निरभाग के दर पै।टेक
तेरी ईज्जत में पड़ज्या खामी
मतना शीश धरै बदनामी
लोग कह देगें नमक हरामी
तेरै नहीं जरै, तूं बह्या फिरै, क्यूं घूंट भरै विष नागण के धर पै
शरीर पै ओट्या दुःख घनेरा, शीश पै करड़ाई का फेरा
साजन मेरे काम देव नै तेरा
चित हड़या, कित आण बड़या, तूं हंस खड़या मुझ कागण के घर पै।
मुझ दुखिया का कोण हिमाती, ना मेली मित्र गोती नाती के घर पै
सज्जन मेरी विपता का साथी
घनश्याम नहीं, आराम नहीं, तेरा काम नहीं दुःख दागण के घर पै।
महल दुहागी मैं चल कै आया, फिरगी पणमेशर की माया
मेरे भी होग्या मन का चाह्या
हुए ठाठ बाट, ना घली घाट गया पहुंच जाट रंग लागण के घर पै।