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मुझ में-तुझ में / सरोज परमार
Kavita Kosh से
मुझ में और तुझ में
सन्नाटे की दीवार
विवश्ता के साथ-साथ
भली लगती है
कुछ भी न बाँटना
जानते-बूझते हुए सब
पचा लेना
तकलीफ़ सह लेना
पर
सन्नाटे को भंग न करना.