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मुल्ला / शमशाद इलाही अंसारी

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मुल्ला चढ़ा मचान पे देवे सबको रुलाये !
कोई पीटे छाती अपनी कोई नीर बहाये !!

कोई रोवे जोर से कोई अपना खून बहाये !
गुपचुप बैठा मुल्ला देखे जनता रोल मचाये !!

अली को मारा दुश्मन ने हुये हजारों साल !
मुल्ला की देखो शैतानी मारे उसे हर साल !!

मारे उसे हर साल चला रखा है गोरख धंदा !
दसवां-चालीसवां का टोटका न होने दे मन्दा धंदा!!

या अली कर मदद मरवावे बार बार ये नारा !
कर लेता वो खुद मदद आपणी काहे जाता मारा !!

किस्से गढ़ गढ़ के सुनावे था उसका घोड़ा न्यारा !
मितरो और कुनबे में से था नबी का सबसे प्यारा !!

था अगर जो प्यारा फ़िर क्यों लगा था लडने !
सत्ता के संघर्ष में क्यों वो जाने लगा था मरने !!

सफ़विद की थी मजबूरी मुल्ला को दिया था काम !
किस्से पढ़ पढ़ कर वो सुनावे पावे राजा से इनाम !!

जीवित का न कभी मान करे मरे को पूजे जीभर !
गंदा रहे साल भर मुहर्रम में खुश्बु से रहे तरबतर !!


रचनाकाल: दिसंबर २३,२०१०