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मुसद्दस करीमा दर मुनाजात बारीएतआला / नज़ीर अकबराबादी

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सदा दिल से ऐ मोमिने<ref>ईमान वाले, मुसलमान</ref> पाकबाज़।
वजू करके पढ़ पंज-वक्ती<ref>पांच बार की</ref> नमाज।
ब वक्ते मुनाजात<ref>ईश-प्रार्थना</ref> बा सद नियाज<ref>सैकड़ो इच्छाएँ</ref>।
यह कह अपने हाथों को करके दराज़<ref>फैलाकर</ref>।

करीमा व बख़्शाए बर हाले मा।
कि हस्तम असीरे कमंदे हवा<ref>ऐ बख़्शिश करने वाले हमारे हाल पर रहम फरमा। हम पर करम और बख़्शिश कर इसलिए कि मैं लालच और खुदगरजी के जाल का कैदी हूं।</ref>

इलाही तू सत्तारो गफ़्फ़ार है।
मेरा यां गुनाहों का अंबार<ref>बोझा</ref> है।
न हामी<ref>सहायक</ref> कोई ना मददगार है।
अब इस बेकसी में तू ही चार है।
न दारीम गै़र अज़ तू फ़रयादरस।
तुई आशियाँ रा ख़ता बख्शो बस।<ref>ऐ खु़दा! हम तेरे सिवा कोई भी फ़रियादों को सुनने वाला नहीं रखते। दरअसल तू ही हम गुनहगारों की ख़ताओं को बख़्शने वाला और माफ़ करने वाला है और केवल तू ही।</ref>

हुए जुर्म तुझ से सग़ीरो कबीर।
पड़ा है तू दामे गुनाह में असीर।
जरा ख्वाबे ग़फ़लत से चौंक ऐ ‘नजीर’।
दुआ मांग जल्द और कह ऐ ख़बीर<ref>ऐ जानकार</ref>।

निगहदार मार अज़तूराहे ख़ता।
ख़ता दर गुज़ारो सबाबम नुमा<ref>ऐ ख़ुदा! तू हमको ख़ता और ग़लती के रास्ते से बचाकर रख। हमारी ग़लतियों को माफ़ कर और सही और सीधा रास्ता दिखा!</ref>

शब्दार्थ
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