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मुस्कान / श्वेता राय
Kavita Kosh से
प्रिय! तेरे अधरों की मुस्कान
साथ परस्पर हरदम करते
रहते भावों का श्रृंगार
आने वाले हरइक क्षण में
करते हैं ऊर्जा संचार
सम्बन्धों की बगिया में करती सौरभ दान
प्रिय! तेरे अधरों की मुस्कान
चिरपरिचित इस जग में जब भी
लगूं खोजने मेरा कौन
झट आकर अन्तस् में मेरे
कर देती हो गुँजित मौन
जीवन के सारे दुःख से भटकाती है ध्यान
प्रिय! तेरे अधरों की मुस्कान
अम्बर के आनन में जैसे
चँदा करता है विचरण
हँसी तेरी भी मुख पर तेरे
करती वैसे ही नर्तन
मन के मेरे सूनेपन में भर देती है गान
प्रिय! तेरे अधरों की मुस्कान