भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुस्कान और मुस्कान / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये रात दिन उड़ने वाली लड़कियाँ
महँगी मुस्कान ओढ़ती हैं
मुस्कान मुझे महँगी पड़ती है
मैं पैसे देकर खरीदता हूँ
उफ़! लड़कियों को कितनी महँगी पड़ती है मुस्कान
जो पैसों के लिए इसे ओढ़ती हैं

इस वक़्त प्रतीक्षाकक्ष में बैठी हैं
दो आपस में बात करती हैं
तीसरी चिन्तामग्न है
बात करने वाली परिचारिकाओं की उँगलियाँ शून्य में
बातचीत की आकृतियाँ बनाती हैं
चिन्तामग्न लड़की की उँगलियाँ चिन्ताओं को थामे हुए हैं

साढ़े नौ बजने को है
चिन्ताएँ उठ कर चल पड़ी हैं
उँगलियों ने चिन्ताओं के बजाय और उँगलियों को थाम लिया है
मुस्कान और मुस्कान साथ चल पड़ी हैं।