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मुस्कुराता बाग़ क्यों मुर्झा गया / उर्मिल सत्यभूषण

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मुस्कुराता बाग़ क्यों मुर्झा गया
कौन जिं़दादिल नगर को खा गया

बस्तियों में बो के इतना ज़हर कौन
फिर हवाओं में उसे फैला गया

ज़हर से काला पड़ा रसवाण यह
दर्द उसको मथ गया, तड़पा गया

बुझ रहे हैं दीप, सांसें घुट रहीं
हर तरफ बादल विषैला छा गया

जल रहे हैं पेड़-पौधे जीव सब
मौत का दानव कहां से आ गया

बस्तियों की बस्तियां वीरान हैं
कहकहों पर एक मातम छा गया

बुझ रहे हैं धीरे-धीरे सब चिराग
आईना उर्मिल को यह समझा गया।