भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुस्कुराता बाग़ क्यों मुर्झा गया / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
मुस्कुराता बाग़ क्यों मुर्झा गया
कौन जिं़दादिल नगर को खा गया
बस्तियों में बो के इतना ज़हर कौन
फिर हवाओं में उसे फैला गया
ज़हर से काला पड़ा रसवाण यह
दर्द उसको मथ गया, तड़पा गया
बुझ रहे हैं दीप, सांसें घुट रहीं
हर तरफ बादल विषैला छा गया
जल रहे हैं पेड़-पौधे जीव सब
मौत का दानव कहां से आ गया
बस्तियों की बस्तियां वीरान हैं
कहकहों पर एक मातम छा गया
बुझ रहे हैं धीरे-धीरे सब चिराग
आईना उर्मिल को यह समझा गया।