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मुस्कुरा कर भोर भर दो / सीमा अग्रवाल
Kavita Kosh से
ढल रहीं हैं कल्पनायें
साँझ जैसी
तुम तनिक-सा मुस्कुरा कर
भोर भर दो
वीतरागी सुर बजाती
बाँसुरी में
झिलमिलाती चाँदनी भर
आँजुरी में
फूँक दो कुछ कामनायुत
मंत्र, अक्षर-
मेघ, सावन, मोर कर दो
क्षितिज पर कुछ डूबता-सा
दिख रहा है
खुद हि खुद से ऊबता-सा
दिख रहा है
मौन जपते व्योम के
ऊँघे सहन में
कलरवों का शोर धर दो