भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मूँगफली / कृष्ण शलभ
Kavita Kosh से
हमको खानी मूँगफली, पापा लाना मूँगफली,
भूल न जाना जब घर आना, लेकर आना मूँगफली!
देखो आज बड़ी सर्दी है, मुझको हुआ ज़ुकाम है,
मूँगफली को बाबा कहते जाड़े का बादाम है।
बिल्कुल महँगी चीज़ नहीं है, इसका सस्ता दाम है,
सर्दी को छूमंतर करती गरमी का गोदाम है।
बड़ा मजा आएगा पापा, तुम भी खाना मूँगफली!
बड़ी जेब के कोट-पैंट अब मैं पहनूँगा शाम को,
अपना हिस्सा खुद मैं लूँगा, तुम देना घनश्याम को।
एक बड़ा-सा झोला मम्मी, दे दो पापा राम को,
पापा जल्दी निपटा लेना दफ्तर के सब काम को।
करना नहीं बहाना कोई, भूल न जाना मूँगफली!