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मूक मिलन की बात / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

कैसे कह दूं दुनिया को
अपने उस मूक मिलन की बात ?
संभव हो तो आ जाना
बन मेरे जीवन में बरसात।
आशाओं की भट्ठी जलती
सूनापन मुझे अखरता है,
ये युगल नैन अब झरते हैं
मन दर्शन को तरसता है।
याद अभी ताजा होली की,
बोलो कैसे भुलूं मैं वह दिवाली ?
मेरी वीणा के मृदु स्वर को
तुम भूल गई क्यों मतवाली ?
क्या आओगी ? बोलो न
कहते टूटी वीणा के तार।
क्या मैं सुनूँगा कभी नहीं
तेरे उन पायल की झंकार।
अपने सपनौं का रक्त बहाकर
अरमानों का देश लुटाकर।
पा न सका, हा पा न सका
जीवन लगता थका-थका।