भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मूक मिलन के बात / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 केना कहबै ई दुनिया केॅ ,
आपनोॅ मूक मिलन के बात।
हुअेॅ सकेॅ तेॅ आबी जइयो,
बनी केॅ जीवन में बरसात।

आशा रोॅ दीपक जललोॅ छै,
सूनापन हमरा अखरै छै।
ई आँख दूनोॅ जे हमरोॅ छै,
दर्शन लेली तरसी गेलोॅ छै।
तोरे प्यारोॅ लेॅ ई जिनगी,
सच में छेकै तोरे ई सौगात।

याद छै हमरा होली के,
कहाँ भूललोॅ छियै दिवाली।
गीत बीन के जे बजलोॅ छेलै,
भूलिये नें गेल्होॅ मतवाली ?
याद तोरोॅ वहेॅ रं आवै छै,
जेना चमकै बिजली रात।

आवेॅ आवी केॅ की करभै,
टूटलै सब ठो वीणा के तार।
लागै नै छै सुनेॅ सकभौं,
तोरोॅ पायल के झंकार।
तोरा बिन ई जिनगी के,
नै छै कोनोॅ विसात ।