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मृत्यु में जीवन हूँ / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
हवा हूँ हवा मैं
मलय समीरण हूँ मैं
मृत्यु में जीवन हूँ
मेरी गति को तुम
पांव में उतार लो
मुझसे उल्लास लेकर
जीवन संवार लो
दबी हुई राख में चिनगी
सुलगा कर मैं
हिम को गला कर मैं
आग मैं जलाऊंगी
निष्प्राण जीवन में
प्राण फूंक जाऊंगी
रुक नहीं पाऊंगी
मैं चलती जाऊंगी
चलना ही धर्म मेरा
धर्म निभाऊंगी
ज़िन्दगी के गीत गाती
सतत बहती जाऊंगी
हवा हूँ हवा मैं।