मेंका को वस्त्र पहनाओ / हरेराम बाजपेयी 'आश'
पता चला साहित्य में नयापन आ रहा है,
समाचार पत्र और पत्रिकाओं में,
आजकल बहुत कुछ नया ही छप रहा है।
जिज्ञासावश मैंने भी,
कई पत्रिकाएँ और अखबार खरीद डाले,
बुद्धि के फावड़े से उनमें गड्डे कर डाले,
तब पाया एक कोने में,
साहित्य परिशिष्ठ,
जिसे पढ़कर अपने दिमाग का,
कर लिया अनिष्ट ,
‘स’ के अभाव में
साहित्य को पाया लाचार,
उस पर हावी ठे,
हत्या लूट और बलात्कार,
होकर निराश पहुँचा पत्रिकाओं के पास,
मैंने पढे लेख, कहानियाँ, व्यंग्य, कवियाएँ,
कथा साहित्य और सत्य कथाएँ,
मैंने पत्रिका के हर पृष्ठ को,
उलट-पलट कर देख डाला,
दूसरे शब्दों में पोस्ट मार्टम कर डाला,
मुख्य पृष्ठ से अंतिम पेज तक,
सच बताऊँ मैंने क्या पाया,
मृत साहित्य की विलासित माया,
बिखर4ए हुए पेंटिसज, ब्रेसरीज़, और अंडरवियर
मादक पेय पदार्थ, शराब सिगरेट और बीयर
वस्त्रों का विज्ञापन,
नारी का नंगा बदन,
आधुनिक सभ्यता के नाम पर,
असभ्यता का ताण्डव नर्तन,
व्यंग के नाम पर मीडनाइट- जोक्स
भौडी कविताएँ,
कुछ पत्रिकाओं के नाम बताएँ,
रंगीन रातें, उत्तेजक कहानियाँ, भटकती जवानियाँ
सेक्स हत्या बलात्कार के जब छापते है विशेषांक,
विज्ञापित किया जाता है,
कि पाठको ने ही की है विशेष माँग,
अत: जो छप रहा है,
पाठकों में खप रहा है,
क्या इसी साहित्य को ,
नया साहित्य बताएँ,
कैसे कहें इसे समाज का दर्पण,
किसकी रुचि किसका आकर्षण,
अब तो चेहरे देख कर छपती है रचनाएं,
हम अपनी व्यथा को कैसे बतालाएँ,
इन पत्र पत्रिकाओं को क्या कहें
इनमें प्रकाशित नवीन साहित्य को क्या कहें,
बेडरूम या शराबखाना,
जहाँ विश्वामित्र सा साहित्य प्रेमी,
मेंका साहित्य शृंगार से हो रहा है दीवाना,
नहीं मिलते अब सुर-तुलसी कबीर,
प्रसाद पंत निराला माखन महावीर ,
कहाँ खोजूँ मिरा का मर्म,
कैसे निभाऊँ अपना साहित्यिक धर्म,
क्या करे कृष्ण,
जब द्रोपदियाँ खुद ही खुलवा रही हो अपना चीर,
अरे कोई तो रोको महादेवी की आँखों से बहता नीर,
प्रेमचंद का पंच परमेश्वर अब कोई नहीं पढ़ता,
भारतेन्दु, केशव, घनानन्द, बिहारी
को घेरे हैं स्कूल औए कालेज की चारदीवारी,
कौन खोले ग्रंथालयों की अलमारियाँ,
जब दुकानों पर उपलब्ध हों,
विश्वविद्यालयीन उपाधियाँ,
नई खोज के नाम से,
महान साहित्यकारॉन में ढूंढी जाती है बुराइयाँ,
कवि सम्मेलनों में पहले पढ़ी जाती है सतही रुबाइयाँ,
राम-कृष्ण ईसा पर दोष मधे जाते है,
गुरुग्रंथ गीता रामायण,
मरने के बाद पढे जाते है,
ऐसा साहित्य जो बनाता हो चरित्र,
अब क्यों छपता,
बताओ मेरे मित्र
मेनका को वस्त्र पहनाओ मेरे मित्र....
मेनका को वस्त्र.....।