भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेंढगा / ओम बधानी
Kavita Kosh से
गळ्या बळ्द सि खाणा क भारि
बांडु भैंसु सि न्यार कट्टु
दिन भर
तास-कच्ची चळनी छन
अर
पसर्यां छन
कभि बिल्या खोळा
कभि सौकारू क खोळा
फसक मार खत्यां
की कथा क न
खाणा छन गौं तैं घूण कर
कोरणा छन देस तैं धिवाड़ु कर
अर बोळ्ना क ज्वान छन
इ मेंढगा – आळगसी।