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मेघ तुम्हारी यादों के / रंजन कुमार झा
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घिर-घिर आते पवन सहारे मेघ तुम्हारी यादों के
कटते हैं कैसे बोलूँ फिर पल भारी अवसादों के
पहली बार जो तुमने रक्खे थे कंधों पर हाथ प्रिय
नहीं भुलाए भूल रहा मन वह पहली बरसात प्रिय
कहाँ गए वे दिन आलिंगन के, प्रेमिल अनुवादों के
तुम सजती फिर मुझे पूछती थी, बतलाओ कैसी हूँ
क्या मैं तेरे प्रणय गीत के सुर सरगम के जैसी हूँ
मुस्कानें मेरी कह देती थी 'हाँ' बिन संवादों के
तेरी डोली सजी मिलन की झूली गैर की बाहों में
मुझको अर्थी मिली प्रेम की अभिशापों में-आहों में
भस्म हुए सुख स्वप्न सलोने अपने अटल इरादों के