मेघ वन में अछि पसाही / मार्कण्डेय प्रवासी

मेघ वन में अछि पसाही, आगि लागल खेत में,
हम म्युर्क नाच करबा में बहुत असमर्थ छी।

गीत-गानक अपहरण भ' रहल अछि वातावरण सँ,
गाम, घर, जंगल, नगर में त्रस्त अछि जीवन मरण सँ।

दीपकक सुर में बजैए युगक वीणा राति-दिन,
तान मल्लारक सुनयबा में बहुत असमर्थ छी।

अछि विपक्षी ताल में तबला बजयबा में हवा,
काल-कवलित लगैए झपताल, रूपक कहरवा।

कागजक नकली ह्रदय में धडकन आवेश नहि,
प्रेम पाथर पर उगयबा में बहुत असमर्थ छी।

बाल बहिरक कान में सुनबैत छी गोंगक कथा,
आखरक आलोक में झलकैत अछि शब्द व्यथा।

माहुरे बहुमतक रूचि अछि, अमृत फेकल जा रहल,
मोंढ़ कँ पंडित बनयबा में बहुत असमर्थ छी।

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