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मेरा अगला जीवन / को उन / कुमारी रोहिणी

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आख़िर, मैं आ ही गया स-उन की पहाड़ियों के जंगल में !
मैंने एक लम्बी आह भरी ।
परछाइयों के ढेर बनने लगे
अपने साथ लाई कुछ मदहोश किरणों को
मैंने आज़ाद कर दिया अपनी गिरफ़्त से । रात चढ़ने लगी ।

तय था हर देश की आज़ादी का अन्त ।

मैं भी आज़ाद हो रहा था, थोड़ा-थोड़ा करके
पिछले सौ वर्षों में जमा किए अपने कूड़े के ढेर से ।
अगली सुबह
ख़ाली पड़े मकड़ी के उस जाले पर पड़ी थी एक बूँद ओस की ।

दुनिया में कितने तरह के अतीत हैं । भविष्य सिकुड़कर रह गया है ।
हवा के कण विलीन हो गए हैं इन्हीं जंगलों में ।
बलूत के पत्ते ऐसे चहक रहे मानो पंछी लौट रहे हों अपने घोंसलों की ओर ।
पीछे मुड़कर देखने पर
मैं पाता हूँ कि मैं आया हूँ निरक्षरों की पीढ़ी से ।

न जाने कैसे
न जाने कैसे
मैं उलझ - सा गया इस जटिल भाषा के अपरिहार्य अक्षरों के जाल में ।

अगले जन्म में मैं बनूँगा एक प्राणहीन पत्थर
जो गहरे धँसा होगा ज़मीन में
एक मूक विधवा के कंकाल के नीचे
और लकड़ी के बण्डलों में बन्धी अनाथों की नई और शान्त पड़ी अनगिनत लाशों के बीच ।

मूल कोरियाई भाषा से अनुवाद : कुमारी रोहिणी