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मेरा गाँव / रंजन कुमार झा
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खोया खोया सा लगता है
कल का मेरा गाँव
गाँव वही था, जिसमें जीवन
होता था खुशहाल
मिलती थी जी भर खाने को
सब्जी- रोटी- दाल
अपने हित में किया किसी ने
जहाँ कभी न कांव
जहाँ परिन्दे भी करते थे
राम नाम का जाप
वहाँ भजन भी लगता सबको
केवल शोर - प्रलाप
रही न तुलसी घर-आँगन में
खोई पीपल-छांव
जहाँ 'अतिथि देवो भव' वाला
संस्कार-व्यवहार
वहाँ गली हर, घर-घर में अब
मात-पिता ही भार
भाई ही भाई पर नित दिन
खेला करते दांव