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मेरा घर / नरेश मेहन
Kavita Kosh से
घर होता है
प्रकृति का खजाना
जहां
धूप होती है
छांव होती है
सभी को
आसरा देने की
आस होती है
जहां चिड़िया
तिनका-तिनका लाकर
घोंसला बनाती है
चींटिया आती है पंक्तिबद्व
भंवरे गुनगनाते हैं
मक्खियां भिन्न-भिन्नाती है
कॉकरोच अपनी लम्बी मूंछो से
कोनो की टोह लेते हैं
मकड़ियों बुनती रहती है जाले
अनाज की बोरी के पीछे से
झांकती चुहिया
छुप जाती है
उसी के पीछे
जरा सी आहट सुनकर
और दबे पांव आकर
बिल्ली पी जाती है
बच्चों के लिए रखा दूध
वह केवल डरती है
कुत्ते से
जो बैठा रहता है
घर के दरवाजे पर
आगन्तुकों को पहचाने के लिए
मेरा घर
बहुत सलौना है
एकदम प्रकृति की तरह