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मेरी अल्हड़ चिर प्रिया / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
रूठी हुई
वह
मुक्के बरसाती है
मेरे कठोर स्याह सीने पर
बिना बतियाए
एकबारगी लौट जाती है
फिर आती है
लिपट जाती है पाँवों से
पखारती है पाँव
गो मैं चट्टान हूँ
वह समुद्री लहर
मैं प्रेमी हूँ
वह मेरी अल्हड़ चिर प्रिया ।