भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी डोली शौह दरया / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(१९७४ दे हढ़-पीड़ताँ दे सहायता-कोश दे लई रची गई)

कल्ल्ह ताँईं सानूँ बाबला
तूँ रक्ख्या हिक्क नाल ला
सतख़ैराँ साडियाँ मंगियाँ
जद झुल्ली तत्ती वा
अज्ज कीकन वेहड़्यों टुरिया
किवें लाहे नी मेरे चा
मेरे गहने नील हत्थ पैर दे
मेरी डोली शौह दरिया
अज्ज लत्थे सारे चा
मेरी डोली शौह दरिया

नाल रुढ़दियाँ रुढ़ गईआँ सद्धराँ
नाल रोंदियाँ रुल गए नीर
नाल हूञ्झे हूञ्झ के लै गए
मेरे हत्थ दी लेख लकीर
मेरे चुन्नी बुक्क सवाह दी
मेरा चोला लीरो-लीर
मेरे लत्थे सारे चा
मेरी डोली शौह दरिया

सस्सी मर के जन्नत हो गई
मैं तुर के औतर हाल
सुन हाढ़े इस मसकीन दे
रब्बा पूरा कर सवाल
मेरी झोक वसे, मेरा वीर वसे
फेर तेरी रहमत नाल

कोई पूरा करे सवाल रब्बा
तेरी रहमत नाल
मेरे लत्थे सारे चा
मेरी डोली शौह दरिया