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मेरी प्यारी प्यारी नातिन / हरेराम बाजपेयी 'आश'

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मेरी प्यारी-प्यारी नातिन
मेरी भोली भली नातिन
मुझको पागल कहती है,
सबको अचरज होता है,
पर बात पत्ते की कहती है, मेरी प्यारी...
सद्य: द्रवित हिमानी जैसी,
या फिर पांखुर की पाती
श्वेत तना और हरित मना है,
बोले तो लगता है गाती।
ठुमुक ठुमुक कर जब वह चलती
छम-छम पायल बजती है। मेरी प्यारी...

मम्मी के संग दिन भर खेले,
और कभी मामा को खो,
नानी से बतियाती ऐसे,
जैसे उनके दादी हो......।
पापप आए पापा आए
कह कर दौड़ लगाती वह
जब घर के दरवाजे की,
टन टन साँकल बजती है। मेरी प्यारी...
मैं अखबार पढ़ रहा था एक दिन,
कहा कि ' अम्मा जिद्दी है,
शान्तिपूर्ण भारत के गले की,
टेढ़ी मेढ़ी हड्डी है,
सुनकर बोली नातिन मुझसे
यही अटल की गलती है... मेरी प्यारी...

मैं बोला घोडा पागल है,
वह सवार को पागल बोली,
मैं बोला स्वामी बक्का है,
उठ जायेगी उसकी डोली,
गुब्बारे में भरी हवा,
दो-चार दिनों ही रहती है।
कोई कहता कुर्सी छोड़ो
कोई कहता बाहर खेलों,
कोई हाय-हाय करवाता,
कोई टाटा कहता बोलो,
इस गोदी से उस गोदी में
उसको जाना पड़ता है
कोई हँसता भोले पन पर
कोई नकली लड़ता है
सरक रही सरकार के माफिक
जाने क्या-क्या सहती है। मेरी प्यारी ...

छोटी उम्र और तन कोमल
संभल संभल कर चलती है,
जितनी ज़्यादा समझाइश है
उतनी ज़्यादा गिरती है
समय यही इतिहास बनेगा,
खेल-खेल में कहती है-मेरी प्यारी नातिन...