रचनाकार: अज्ञात |
ऐ कातिबे तक़दीर मुझे इतना बता दे,
क्यों मुझ से ख़फ़ा है तू
क्या मैंने किया है?
औरों को ख़ुशी मुझको फ़कत दर्दो रंजो ग़म
दुनिया को हँसी और मुझे रोना दिया है
क्या मैंने...
हिस्से में सबके आई हैं रंगीन बहारें
बदबख्तियाँ लेकिन मुझे शीशे में उतारें
पीते हैं लोग रोज़ो शब मुसर्रतों की मय
मैं हूँ कि सदा ख़ूने जिगर मैंने पिया है
क्या मैंने...
था जिनके दम क़दम से ये, आबाद आशियाँ
वो चहचहाती बुलबुलें जाने गईं कहाँ?
जुगनू की चमक है न सितारों की रोशनी!
इस घुप्प अंधेरे में है मेरी जान पर बनी।।
क्या थी खता कि जिसकी सज़ा, तूने मुझ को दी
क्या था गुनाह कि जिसका बदला मुझ से लिया है
क्या मैंने...