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मेरी माँ की जुबान / दीपक जायसवाल
Kavita Kosh से
जब मैं गाँव छोड़ा तो
माँ छूटी और भोजपुरी भी
इस महानगर में जब
कहीं से कान में पड़ जाता है
हार्न की जगह कोई भोजपुरी का शब्द
आँखों में तैर जाता है
मेरा गाँव, बचपन, माँ, खेत और मेरी गैय्या
जब किसी भाषा में आने लगती है शुष्कता
तो वह लौटती है अपननी बोलियों के पास
शुष्क बादल लौटता है पानी के लिए
समुन्दर के पास
दाना और पानी के लिए सारी चिड़ियाएँ आसमान से उतरती हैं
धरती के पास
मेरी माँ की भाषा भोजपुरी थी
दुनिया का सबसे गहरा और मज़बूत प्रेम मुझे इसी में मिला
जब कभी मेरे पैर लड़खड़ाते थे माँ के पास जाता था
भाषा जाती है बोली के पास
जब भाषा में ताकत ख़त्म होने लगती है
तो वह अपनी जड़ों की तरफ़ लौटती है