भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरी हर ख़्वाहिश अधूरी रह गयी / अजय अज्ञात
Kavita Kosh से
मेरी हर ख़्वाहिश अधूरी रह गयी
ज़िंदगी की जुल्फ उलझी रह गयी
ज़ह्नो दिल में ठन गयी जिस रोज़ से
नींद बस करवट बदलती रह गयी
देह के बंधन को त्यागा रूह ने
एक मुट्ठी ख़ाक बाक़ी रह गयी
वो बसेरा खाली कर के चल दिया
नाम की तख़ती लटकती रह गयी
इत्तेफ़ाक़न छू गया उनसे जो हाथ
देर तक ख़ुशबू महकती रह गयी