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मेरे छोटे-छोटे सच / कुमार कृष्ण
Kavita Kosh से
'घबराने की कोई बात नहीं
आज रात को आएँगे देवता
अपनी पीठ पर लादकर ले जाएँगे
पूरे गाँव का दुःख'
चिल्ला रहा था जोर-जोर से एक आदमी
उसके बिखरे बालों में
हिल रहा था पूरा गाँव
उसकी नाक सूँघ रही थी गाँव का वर्तमान
उसकी आग वाली हथेलियों पर
उछल रहा था गाँव का भविष्य
वह छीन चुका था पूरी तरह
बच्चों के सपनें
माँ खुश थी-
उसकी खुशी
फटी हुई चादर से उछलकर
चली गई थी गाय के थनों की ओर
उदास थे पिता बहुत उदास
एक भी बच्चे की नींद नहीं बचा पाए वह
अगली सदी के लिए।