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मेरे पास वाली सवारी / देवनीत / रुस्तम सिंह

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ग़रीबी
कहीं-कहीं
मुझे अच्छी भी लगती है

बुल्ले के चूल्हे जैसी

दीवाली वाले दिन भी
शाम तक रिक्शा चलाती
आती है

पच्चीस का पऊआ ले
दो की कलई, सात के खाण्ड-खिलौने, दस के पटाखे

रिक्शे में धरी आती
अपनी किंगडम

पर आज
पता नहीं कब बस में
मेरे साथ वाली सीट पर आ बैठी है ग़रीबी
सादा साड़ी में लिपटी

साड़ी में किस ने किस को पहना है

अपनी टिकट वाली सीट पर
सिमटी हुई बैठी है

केला छीलने से हिचकिचाती
का चेहरा देखता हूँ मैं

मुझे कवि होने से डर लगता है ।

मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : रुस्तम सिंह