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मेरे वृन्त पर / भवानीप्रसाद मिश्र
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मेरे वृन्त पर
एक फूल खिल रहा है
उजाले की तरफ़ मुंह किये हुए I
और उकस रहा है
एक कांटा भी
उसी की तरह
पीकर मेरा रस
मुंह उसका
अँधेरे की तरफ़ है I
फूल झर जाएगा
मुंह किए -किए
उजाले की तरफ़
काँटा
वृन्त के सूखने पर भी
वृन्त पर बना रहेगा