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मेरे सोचों में बज रही हो तुम / उर्मिलेश
Kavita Kosh से
भूले गीतों की रेशमी धुन-सी
मेरे सोचों में बज रही हो तुम I
मेरी अतुकान्त ज़िन्दगी में तुम
ताल लय स्वर के साथ आई हो,
गद्य जैसी मेरी निगाहों में
पद्य बन बन के रोज़ छाई हो;
मेरे नवगीती तेवरों में भी
गीत जैसी सहज रही हो तुम I
धीमी-धीमी ये सरगमी साँसें
जब कभी मुझको गुनगुनाती हैं,
वाद्य यंत्रों सी धडकनें मेरी
ताल तुमसे स्वयं मिलाती हैं;
एक संगीत की कला जैसी
मेरे मन में उपज रही हो तुम I
चुपके-चुपके तुम्हें मैं गाता हूँ
छत पर बैठा मुकेश की धुन पर,
दर्द जो रह गए थे अनगाये
मेरे अहसान हैं बड़े उन पर;
दूर रहकर भी कंठ में मेरे
एक स्वर सी लरज रही हो तुम I