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मेरो गौं मुलुक / महेंद्र सिंह राणा आज़ाद
Kavita Kosh से
पैलि कति बड़िया ची मेरो गौं मुलुक
अब कतक्या बदलीगे यख का यूँ लोग,
पैलि सब आपस मा स्यों-सिमेन लगूँ छि
अब यख हैलो-हाय, गुड़-बाय बोल्दा छि,
पैलि नांगा खुट्योन क्ख-क्ख दौड़या चि
अब भैर-भितर जाण तै हिल वाड़ा बूट चि,
पैलि सब बुड्या बैठी के तम्बाकू घुड़-घुड़ करदा छिन
अब ज्वान नौन्याड़ गुटका-सिगरेट खाण्या छिन,
पैलि ब्याखुनी सब बैठी के औण्ण-कथा बरात लगूँ छिन
अब यख आपस मे क्वे प्यार से बोल्दा भी नी छिन,
‘आजाद’ की आंख्यों मा आज पाणी ऐ गे
क्वी द मेरो मुलुक मीते वापस लोटे दे।