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मेह / श्याम महर्षि
Kavita Kosh से
टिटूड़ी रौ बोकणै
अर चांद री
बादळ्यां सूं
होंवती रैयी
लुक मिचणी
आखी रात,
पळकती बिजळीं
अर गरजता बादळ
ढळती रात रा
आभै मांय
मचावै तुरळ,
उजाळै रो
इन्दरधनख
बिरखा सूं
भीज‘र
करै सरूआत
नूंवैं दिन री,
नाचै-कूदै अर
गावै टाबर
बीच गवाड़
मेह बाबो आवै
सीटा-पोळी ल्यावै।