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मैंने दुख को देखा है / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
हाँ,
मैंने दुख को देखा है
ठीक वैसे
जैसे मैं तुमको देख रहा हूँ
की है बात
थामा है हाथ
रोए हैं
घण्टों तक
साथ-साथ।
मैंने बांचा है
कविता में दुख का छन्द
सुना है
हवा में दुख का सरगम
लिखा है
शब्दों में दुख का दर्द
कहाँ नहीं है दुख
सर्वत्र व्याप्त है वह
सृष्टि में
जिसे मैंने देखा है
कई-कई बार
थार में।