मैं खोज रहा हूँ कोकिल-स्वर।
बतला दो मेरे नील व्योम!
मैं इस संसृति से हूँ कातर॥
कितने तरु का उर सज्जित कर,
मधु माधव का मन में मधु भर;
वह बोल उठी वंशी-ध्वनि सी--
हो गए एक अवनी-अंबर॥
प्रिय पीड़ा को भी कर सुखकर,
पथ-हीन व्योम में रहा विचर;
ऐसे कोकिल-स्वर के पाने को,
व्याकुल है मेरा अंतर।
मैं खोज रहा हूँ कोकिल-स्वर।