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मैं गीत पुराना हूँ / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
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मैं गीत पुराना हूँ
जीवन की करूण कथा में ही
अन्तर की मधुर व्यथा मेरी
यह तरल नयन कह देता है
जग से दुख दर्द कथा मेरी
अन्तर में आह तड़पती है
बस उन्हीं पुरानी बातों से
मन की आकुलता बढ़ती है
प्रिय के कोमल आघातों से
जीवन का पृष्ठ उलटता हूँ
मन ही मन कुछ दुहराता हूँ
जब उठते पाँव हमारे तो
अन्तर में आशा बंध जाती
मेरे पद-संचालन में ही
रे! मधुर रागिणी सध जाती
हो साध न पूरी साधन बिन
इसका दुख मुझे नहीं होगा
मैं हूँगा अपने कहीं और
मन का अभिलाष कहीं होगा
दुख जीवन को दुलराता हूँ
मैं भी दुख को सहलाता हूँ
मैं गीत पुराना गाता हूँ