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मैं जा रही हूँ उसने कहा / दीपक जायसवाल
Kavita Kosh से
केदार जब वह जा रही थी
क्या तुम्हारा मन नहीं भीगा था?
तुम नहीं रोए थे?
जैसे बिफर उठा था हीरामन
सात कोस तक चहुँओर
बादलों के संग रोई थी उसकी आँखे
हृदय की जगह कैसे
रखा जाता है पत्थर केदार?
क्या मरने से पहले एक बार भी
मिलने की इच्छा नहीं है तुममें?
क्या हूक उठती है
कभी-कभी अब भी दिल में?
क्या उसके चुम्बन तुम्हें नहीं आते हैं याद?
उसकी हंसी क्या तुम भूल गए हो केदार!
तुम्हारे भीतर वक़्त को पीछे मोड़ देने का
अब कभी नहीं आता है ज्वार?
क्या वह लौटे तो तुम
बात भी नहीं करोगे केदार?
नहीं
हा हा हा-क्यूँ नहीं-क्यूँ नहीं
बिलकुल
तुम झूठ बोलते ही कहाँ हो कठकरेज केदार।