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मैं तुझे पहचान लूँगी / शशि पाधा
Kavita Kosh से
लाख ओढ़ो तुम हवाएँ
ढाँप दो सारी दिशाएँ
बादलों की नाव से
मैं तुम्हरा नाम लूँगी
रश्मियों की ओट में भी
मैं तुझे पहचान लूँगी |
रात तारों का चमकना
या कोई संकेत तेरा
मुस्कुराती चाँदनी सब
खोल देगी भेद तेरा
जुगनुओं की ज्योत थाम
मैं तुझे आह्वान दूँगी
भोर के झुटपुटे में
मैं तुझे पहचान लूँगी |
रेत कण पर बूँद सावन
या सुनी पदचाप तेरी
मिलन के आभास में ही
काँपती है देह मेरी
हो अमा की रात कोई
नयनदीप दान दूँगी
नभ की नीली नीलिमा में
मैं तुझे पहचान लूँगी |
लौट आओ चिर पथिक तुम
ढूँढने की रीत छोड़ो
बीच धार नाव तेरी
थाम लो पतवार, मोड़ो
राग छेड़ें जल तरंगें
मैं तुझे निज गान दूँगी
लहर के उल्लास में
मैं तुझे पहचान लूँगी |
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