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मैं तुम्हें जलने न दूँगी / उर्मिल सत्यभूषण
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मैं तुम्हें जलने न दूँगी
खुदकुशी करने न दूँगी
तुम पटकती शीश बारम्बार
तोड़ने को लौह की दीवार
माथ यह फटने न दूँगी
मान तब घटने न दूँगी
क्यों हुई जलने को तत्पर
जिं़दगी के श्वेत पट पर
कालिमा मलने न दूँगी
मैं तुम्हें जलने न दूँगी
सामने अरिदल खड़ा तैयार
तुम निहत्थी, पर करेगा वार
इस तरह लड़ने न दूँगी
आगे यूँ बढ़ने न दूँगी
यह अकेली साधना बेकार
रोक लूंगी आग के इस पार
आग को डसने न दूँगी
ज्वाल में फंसने न दूँगी
मैं खड़ी हूँ आज तेरे साथ
और कितने उठ रहे हैं हाथ
हाथ मैं मलने न दूँगी
मोम सा गलने न दूँगी।