हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
मैं तो पाडूं थी हरी हरी दूब बटेऊ राही राही जा था
तूं तो बहुत सरूपी नार गैल मेरी चालै ना
मैं तो एक कहूंगी बात बटेऊ तूं सुणता जा
तेरै मारूंगी जूत हजार बटेऊं तूं गिणता जा
मेरे बाबुल के घर का बाग मेवा तो रुत की सै
मेरे भाई भतीजे साठ कुआं म्हारा घर का सै