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मैं नागरिक हूँ / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
मैं नागरिक हूँ
सोचती हूँ
बिगड़ चुके हैं लोग और
सबको ठीक करना मुश्किल है
इसलिए मैं भी शामिल हो जाती हूँ
भीड़ में
अकेले डर लगता है मुझे
मैं नागरिक हूँ
हस्तक्षेप नहीं करती दूसरों के
दु:ख में सुख में
उनके जीवन में
तल्लीन रहती हूँ
अपनी ही जिंदगी की सफलताओं में
सफलता और सुख ही अंतिम ध्येय है
और चरम मूल्य भी
इस जीवन का
मानती हूँ
सशक्त को बड़ा
छोटा
अशक्त को
बड़ा बनना है मुझे
डर लगता है
छोटे लोगों से।