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मैं बजने को तैयार हूँ / रामगोपाल 'रुद्र'
Kavita Kosh से
मैं बजने को तैयार हूँ, मत मेरे तार उतार!
आँखों में ऐसी अंजनता!
पाँखों में कैसी खंजनता!
मैं अँजने को तैयार हूँ, तू दीपांजन तो पार!
वरदान मिला था जो तेरा
सरदर्द बना है अब मेरा
मैं तजने को तैयार हूँ, निज कर यह मुकुट उतार!
दिल हो, तो दिल के सान चढ़ा,
दृग या पग के पाषाण चढा;
मैं पजने को तैयार हूँ, जो तुझे नहीं इन्कार!
जो फिर भी तेरा मन मचला,
तो 'ना' मैं कैसे करूँ भला!
मैं सजने को तैयार हूँ आ, मेरे साज सँवार!