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मैं बुद्ध / शहंशाह आलम
Kavita Kosh से
एक रात
तुम्हारी आंखें बन्द थीं
और मेरी आंखें थीं
खुली हुईं
उस रात
सारी कल्पनाएं
सारे सपने
सारे अवसाद
तुम्हारे हवाले कर
अकेले बादल की तरह
मैं बुद्ध बनने
निकल पड़ा था।