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मैं मधुमय जीवन क्या जानूँ? / बलबीर सिंह 'रंग'

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मैंने जीवन के क्षण काटे,
मैं मधुमय जीवन क्या जानूँ?

मैं भाँति-भाँति से समझ चुका
जग-जीवन की परिभाषायें,
इतने विस्तृत जग-प्रांगण में-
सीमित हैं मेरी आशायें।

जीवन नौका से टकरातीं
लहरे बन निपट निराशायें,
मन ही मन में मर मिटी आज
मेरे मन की अभिलाषायें।

मैंने दुख का ताण्डव देखा
मैं सुख का नर्तन क्या जानूँ?
मैंने जीवन के क्षण काटे,
मैं मधुमय जीवन क्या जानूँ?

सुख दिवस न मैंने लख पाऐ
केवल देखीं दुख की रातें,
अपने आगे मैंने अपनों की
स्वार्थ भरी देखी घातें।

मन का दुख हल्का करने को
दो शब्द न सुन पाया जग के,
सुनता आया हूँ मैं अब तक
जग की कटु व्यंग भरी बातें।

ऐसे निष्ठुर जग का वैभव
मैं दुखी अकिंचन क्या जानूं?
मैंने जीवन के क्षण काटे
मैं मधुमय जीवन क्या जानूँ?

मेरा इतना अपनापन था
अहसान जगत का ले न सका,
जग की बलिबेदी पर अपने
आदर्शों की बलि दे न सका।

मेरे जीवन संघर्षों में
यदि जग भी कुछ दुख सह लेता,
तो सम्भव था मैं भी जग से
अपने मन की कुछ कह लेता।

जिस जग से मुक्ति मिली न मुझे
उस जग के बन्धन क्या जानूँ?
मैंने जीवन के क्षण काटे,
मैं मधुमय जीवन क्या जानूँ?

जग के सौंदर्य सुधा-रस का
मैं अनुचित मूल्य चुका न सका,
मदमाते यौवन के आगे
निज उन्नत भाल झुका न सका।

मैं किसी हृदय की कालिख को
इस अश्रु धार से धो न सका,
निज मन के शुद्ध धरातल पर
वासना बीज मैं बो न सका।

मैं आत्म समपर्ण का हामी
झूठे आलिंगन क्या जानूँ?
मैंने जीवन के क्षण काटे,
मैं मधुमय जीवन क्या जानूँ?

मुझको प्रमुदित करने स्वर्गिक
संगीत सुनाता क्यों कोई?
मेरे जीवन के खंडहर में
नव-विश्व बसाता क्यों कोई?

शैशव के सरल दृगंचल में
यौवन की मादकता भर कर,
छुप-छुप कर इंगित से मुझको
निज पास बुलाता क्यों कोई?

आदेशों का अभ्यासी हूँ
मैं मौन निमन्त्रण क्या जानूँ?
मैंने जीवन के क्षण काटे,
मैं मधुमय जीवन क्या जानूँ?

किंचित भी मुझको रुचे नहीं
मजहब के झूठे आडम्बर,
जग के ठाकुर को ठुकरा कर
पूजा निज मन-मठ का ठाकुर।

सच तो यह है जब मैं अपनी
भावुकता में बह जाता हूँ,
तब मन्दिर, मसजिद, गिरजों को
भू-भार तलक कह जाता हूँ?

कवि होकर अपने भावों पर
मैं निठुर नियंत्रण क्या जानूँ?
मैंने जीवन के क्षण काटे,
मैं मधुमय जीवन क्या जानूँ?

मैं अपनी जीवन-लतिका का
आशा-जल से करता सिंचन,
यह दुनिया नित नव-लतिका पर
बरसाती बार-बार पाहन।

पर मेरी दृढ़ता के आगे
दुनिया की एक न चलती है,
फिर जाने क्यों पगली दुनिया
नित नव-नवरंग बदलती है।

मैं एक रंग में रंगा हुआ
नव-नव आकर्षण क्या जानूँ?
मैंने जीवन के क्षण काटे,
मैं मधुमय जीवन क्या जानूँ?
मैं मधुमय जीवन क्या जानूँ?