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मैं लिखता हूँ कविताएँ / मनोज छाबड़ा

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मैं लिखता हूँ कविताएँ
अपने पुत्र के लिए
उसके मित्रों के लिए
अपनी बेटी के लिए लिखते समय
मैं उसके लिए भी लिख देना चाहता हूँ
जिससे एक दिन वह प्रेम करेगी

प्रेम करने वालों के लिए लिखूँगा मैं कविताएँ
माँ के लिए
पिता के लिए
भाई के लिए ज़रूर लिखूँगा मैं
उसे एक दिन
हो जाना है पिता मेरे लिए

उनके लिए नहीं लिखूँगा मैं
जिनके पास
प्रेम की पराजय के ढेरों किस्से हैं