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मैं व्यथा का कवि नही हूँ / संदीप द्विवेदी

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ना समझना
रोते हुए किस्से लिखूंगा
उम्मीद हरदम रहेगी
मेरी लेखनी में
मत पढो
ग़र दिल तेरा टूटा हुआ हो
कुछ न हासिल होगा मेरी पंक्तियों में
हाँ, ग़र संभलना हो तो मेरे पास आना
साथ बैठ के रोऊँ मैं वो कवि नही हूँ
मैं व्यथा का कवि नही हूँ...

उलझ कर सुलझे हुए हो तो बताओ
गिर गए थे फिर उठे हो तो बताओ
तूफां के आगे टिक न पाए भले लेकिन
आखिरी दम तक लड़े हो तो बताओ
छिप गए थे तुम वो किस्से मत सुनाना
अफ़सोस में डूबा हुआ मैं कवि नही हूँ
मैं व्यथा का कवि नही हूँ

वो प्रेम
जो उम्र सा ढलता रहे
जरूरतों का ठग उसे ठगता रहे
वो प्रेम
जो एक अड़चन सह ना पाए
वो प्रेम
जो ह्रदय को छलता रहे
प्रेम यदि बस देह का हो
तो कोई और देखो
वासनामय प्रेम का मैं कवि नही हूँ
मैं व्यथा का कवि नही हूँ

तुम ही हो बस टूटे हुए
ऐसा नही है
मुश्किलें तो जहाँ में सबको मिली है
राम थे अवतार सबको पता है
पर कब उनकी राह फूलों की रही है
न लड़ सको तो तुम मेरे पन्ने पलट दो
याचना करना सिखाऊं
मैं व्यथा का कवि नही हूँ...