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मैक़दानोश हम भी हैं लेकिन / बलबीर सिंह 'रंग'
Kavita Kosh से
मैक़दानोश हम भी हैं लेकिन, जामे दीदारे यार पीते हैं
तल्खि़ये जीस्त की दुहाई है रोज मरते हैं, रोज जीते हैं।
आप रुस्वा न हों इसी डर से
अपनी आँखें भी नम नहीं करते
हमको हर ग़म में रोना आता है
आपकी बात हम नहीं करते
मेरे हमदम जरा सुनो तो सही
आलमे-ग़म गुसार की बातें
ऐसे मौसम में नामुनासिब हैं
आपकी मेरी प्यार की बातें
पत्ते-पत्ते कीजान गर्दिश में
गुन्चे-गुन्चे की आँख पुरनम है
ख़ल्क में बढ़ रही है पैदावार
मुल्क में भुखमरी का आलम है
अमन के वास्ते यह लाज़िम है
कि चमन का बाग़बाँ बदल डालें
‘रंग’ आ जाये अगर हम मिलकर
जमीं तो फिर भी जमीं है, आसमाँ बदल डालें