Last modified on 19 जुलाई 2016, at 22:56

मैना का श्रीपुर प्रयाण / प्रेम प्रगास / धरनीदास

चौपाई:-

इतना गुन जव पाँखे बखाना। सुनि पाँखेन कर ज्ञान भुलाना।।
जब सब पंखिन चेत सम्हारा। तब परमारथ वचन उचारा।।
तुम सब चाह धरहि अब भाई। प्रानमती मै देखों जाई।।
साधि घरी उत्तम ठहराई। तेंहि दिन विहसि चली वहराई।।
बहुत दिवस उदधी नियराई। पार चलो उडि सुमिरि गोंसाई।।
क्षुधावन्त मैना अकुलानी। खार पयोदधि पियत ना पानी।।

विश्राम:-

दिन समस्त मैना गई, तब सँझा भइ आय।
भूख पियासन ब्याकुली, थाकी उडि न सिराय।।27।।