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मैया बहुत बुरौ बलदाऊ / सूरदास


मैया बहुत बुरौ बलदाऊ ।

कहन लग्यौ बन बड़ौ तमासौ, सब मौड़ा मिलि आऊ ॥ मोहूँ कौं चुचकारि गयौ लै, जहाँ सघन बन झाऊ ।
भागि चलौ कहि गयौ उहाँ तैं, काटि खाइ रे हाऊ ॥
हौं डरपौं अरु रोवौं, कोउ नहिं धीर धराऊ ।
थरसि गयौं नहीं भागि सकौं, वै भागै जात अगाऊ ॥
मोसौं कहत मोल कौ लीनौ, आपु कहावत साऊ ।
सूरदास बल बड़ौ चवाई, तैसेहिं मिले सखाऊ ॥

भावार्थ :-- श्रीकृष्णचन्द्र कहते हैं -) `मैया ! यह दाऊ दादा बहुत बुरा है । कहने लगा कि `वन में बड़ा तमाशा ( अद्भुत दृश्य) है , सभी बालक एकत्र होकर आ जाओ ।' मुझे भी पुचकार कर वहाँ ले गया, जहाँ झाउओं का घना वन है । (वहाँ जाने पर ) यह कहकर भाग गया कि `अरे भाग चलो, यहाँ हाऊ काट खायेगा ।' मैं डरता था, काँपता था और रोता था; मुझे धैर्य दिलाने वाला भी कोई नहीं था । मैं डर गया था, भाग पाता नहीं था, वे सब आगे-आगे भागे जाते थे । मुझसे कहता है कि तू मोल लिया हुआ है और स्वयं भला कहलाता है ।' सूरदास जी कहते हैं--(मैया ने कहा-) `बलराम तो बड़ा झूठा है और वैसे ही सखा भी मिल गये हैं ।'