भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मोटा मेढक / निरंकार देव सेवक
Kavita Kosh से
मोटा मेढक एक सड़क पर,
कहता जाता था टर-टर-टर!
शाम हुई घिर रहा अँधेरा,
बारह मील गाँव है मेरा,
घर तक नहीं पहुँच पाऊँगा!
रस्ते में ही लुट जाऊँगा!