भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मोटा सेठ / सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त'
Kavita Kosh से
मैंने देखा इंडिया गेट
वहाँ खड़ा था मोटा सेठ
लगता था वह हो गया लेट
लेकर दौड़ा मोटा पेट
ऐसा दौड़ा ऐसा दौड़ा
चर्र से फट गई उसकी पैंट।