मौसम के बदलला सें / शिवनारायण / अमरेन्द्र
ग्रीष्म तपेॅ लागलोॅ छै
रौदी के आँचोॅ में
देहोॅ रोॅ गंध सोन्होॅ होय गेलोॅ छै
गुलमोहर के दहकतें
आगिने रं फूलोॅ में
कोय गर्म आँखी रोॅ
ललैन्होॅ घाव दरकेॅ लागलोॅ छै
आरो
ऐंगन में राखलोॅ गमला में
अंग्रेजी फूल के रंगोॅ रोॅ चमक
केकरो गुलाबी यादोॅ में
आनेॅ कत्तेॅ तेॅ अर्थ भरेॅ लागलोॅ छै।
एक ग्रीष्म के तपला सें
कत्तेॅ कुछ बदली गेलोॅ छै!
तोरोॅ घर के
पिछुलका बालकनी सें लागलोॅ
रेलिंग के दायां छोरोॅ पर बैठलोॅ
ख्याल के शीतलताहौ में
घाव के सेंध लागलोॅ होथौं
मिटाय गेलोॅ होथौं वैठां सें
केकरो अंगुली सिनी के स्पर्श के याद,
बन्द होय गेलोॅ होथौं वैठां
भोरे-भोर बगरोॅ के फुदकवोॅ
आरो
कोय अलसैली संझा में चुप-चुप
ओझल नजरी के
चौकस आँखी सें टकरैवोॅ।
सच्चे में
एक मौसम के बदलला सें
कत्तेॅ कुछ बदली जाय छै
बदली जाय सांझकोॅ खुशबू
महकतें ख्याल रोॅ रंग
आँखी के मुट्ठी भर प्यास
आरो
भर सरङग
ख्यालोॅ के गुलाबी घेरा
गमकतेॅ जीवन रोॅ अमृत।